Sunday, July 20, 2008
महिलाएं विवाह से बाहर निकलना चाहती हैं
बदलते समय ने रिश्तों के मायने बदल कर रख दिए हैं। क्योंकि लोगों में हर स्तर पर जागरूकता बढ़ी है, इसलिए समाज में रिश्तों को लेकर भी नज़रिये में बदलाव साफ देखा गया है। आज की युवा पीढ़ी समाज के परंपरागत बंधनों को तोड़ रही है। क्योंकि जुडिशरी भी समाज का ही एक हिस्सा है इसलिए उसका निर्णय भी समाज से प्रभावित होता है। हमारा समाज हमेशा से ही पुरुष प्रधान समाज रहा है और उसकी हर व्यवस्था पुरुष का ही समर्थन करती रही है। आज स्त्री समाज के बंधन तोड़ रही है और नई व्यवस्था का दामन थाम रही है। लड़कियां विवाह संस्था से बाहर निकलना चाहती हैं। स्त्रियां जैसे-जैसे शिक्षित होंगी वैसे-वैसे विवाह संस्था से दूर होती जाएंगी। दरअसल महिला की देह पर कब्ज़े के लिए विवाह संस्था का गठन हुआ। पिछले दिनों माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर बच्चा अपने पिता की जात से जाना जाएगा और वहीं दूसरे फैसले में कहा गया कि जात-पात को खत्म कर दिया जाए। न्यायपालिका में एक ही बात को लेकर विभिन्न मत हैं। दरअसल कानून की जटिल प्रक्रिया स्त्रियों की नई-नई समस्याओं के लिए ज़िम्मेदार है। कानून ने स्त्रियों के साथ कोई बहुत अच्छा सुलूक नहीं किया है। बल्कि उनका मज़ाक ही बनाया है। कानूनों की बेहूदगी देखिए - 1975 में टर्मिनंसी ऑफ प्रेगनंन्सी ऐक्ट बना जिसमें कहा गया कि महिला पति की सहमति के बिना अपनी मर्जी से अबॉर्शन करा सकती है। वहीं हिंदू मैरिज ऐक्ट मे कहा गया कि अगर पत्नी ऐसा करती है तो यह मेंटल क्रूअल्टि है और अगर पत्नी बिना बताए फैसला ले ले तो पति पत्नी को इस आधार पर तलाक दे सकता है। इस पर किसी कानूनविद ने बहस की ज़हमत तक नहीं उठाई कि इसकी आड़ में पति, पत्नी पर क्या क्या ज़ुल्म ढा सकता है। इंडियन पीनल कोर्ट की धारा 497 में व्याभिचार के बारे में कानून है, जिसमें कहा गया है कि किसी दूसरे की पत्नी के साथ बिना उसके पति के सहमति से संबंध बनाना नाजायज़ है क्योंकि वह पति की संपत्ति है। वहीं दूसरी ओर लिखा गया है कि अगर विवाहित पुरुष किसी अविवाहिता या तलाकशुदा महिला से संबंध बनाता है तो वह सही है। अगर बात विवाह संबंधी कानूनों की करें तो 16 साल की लड़की अपनी मर्ज़ी से संबंध बना सकती है। अगर पत्नी 15 साल की है तो पति का उससे संबंध बनाना रेप नहीं माना जाएगा और अगर पत्नी 12 से 15 साल की है तो उससे संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा, जिसमें दो साल की सज़ा का प्रावधान है। और वहीं किसी सामान्य लड़की के साथ रेप करने पर सज़ा का प्रावधान 7 साल रखा गया है, यानी एक ही जुर्म के लिए विवाह संस्था के तहत सज़ा का प्रावधान कम है। विवाह संस्था के बने रहने से महिलाओं के खिलाफ अनेक अत्याचार हुए हैं। इसीलिए महिलाओं की रुचि विवाह संस्था में कम होती जा रही है। विवाह संस्था के टूटने का एक कारण यह है कि इसके तहत महिलाओं के खिलाफ हिंसा करने में पुरुषों को आसानी रहती है। क्योंकि घर की सारी ज़िम्मेदारियां महिलाओं के ज़िम्मे ही रहती हैं। लेकिन अब समीकरण बदल रहे है। महिलाओं ने अपने अधिकार मांगने शुरू कर दिए हैं। यही वजह है कि अब वह सामाजिक बंधनों का खुलकर विरोध कर रही हैं। और यहीं से एक नए समाज के गठन का रास्ता साफ होता है। यहीं से सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संरचना बदलेगी और पूंजी के समीकरण भी बदलेंगे और यह बदलाव ऐतिहासिक होगा। कानून को बदलते सामाजिक संदर्भ को ध्यान में रखकर खुली सोच से काम करने की ज़रूरत है।
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