Wednesday, July 30, 2008

मुद्दा : तेजाबी हमले पर सख्त सजा जरूरी

मुद्दा : तेजाबी हमले पर सख्त सजा जरूरी

अंजलि सिन्हासरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने तेजाब फेंकने के अपराध के खिलाफ सख्त सजा वाले कानून में संशोधन का मसविदा तैयार कर लिया है तथा उस पर सभी राज्यों की मंजूरी भी ले ली है। मालूम हो कि गतवर्ष सुप्रीम कोर्ट में एक नाबालिग लड़की पर तेजाब फेंकने की घटना की सुनवाई चल रही थी। इसी दौेरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बर्बर अपराध पर चिन्ता व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग से इस अपराध पर रिपोर्ट मांगी थी। आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें बताया था कि कैसे हमारे देश में यह अपराध बढ़ा है जो पीड़ित की पूरी जिन्दगी बर्बाद कर देता है। आयोग ने यह भी स्वीकारा था कि मौजूदा कानूनी प्रावधान अपर्याप्त हंै। वर्तमान में आईपीसी की धारा 326, जो गम्भीर रूप से घायल करने के मामले में लागू होती हैै, उसके अन्तर्गत यह केस दर्ज होता है। आयोग ने विधि आयोग से प्रभावी कानून बनाने पर विचार करने करने के लिये सिफारिश की थी। राज्य सरकारों ने धारा 326 के साथ 326 अ जोड़ने की बात कही है जिसमें तेजाब फेंकने वाले को न्यूनतम सजा सात साल की हो। लेकिन महिला आयोग ने न्यूनतम सजा 10 साल और अधिकतम उम्रकैद की सिफारिश की है तथा पीड़ित को एक लाख रूपये मुआवजे की बात सुझायी है। खुले बाजार में तेजाब की बिक्री पर रोक लगाने की भी सिफारिश की गयी है लेकिन इस के लिये राज्य सरकारें सहमत नहीं हंै। तेजाब खुले बाजार में उपलब्ध हो या उसे नियंत्रित किया जाय इसके लिये दोनों ही प्रकार की दलीलें दी जा सकती हंै। अपराधों की बढ़ती घटनाओं पर रोक के मद्देनजर बिक्री को नियंत्रित करना भी एक उपाय हो सकता है लेकिन हमारे देश में गैर कानूनी चीजें इस्तेमाल करने वाला किसी तरह से जुगाड़ कर ही सकता हैं । इसलिये प्रमुख मुद्दा यही बनता है कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा क्यों हो ? यदि किसी को असहमति हो या किसी को कोई व्यवहार मान्य न हो तो भी हिंसा की इजाजत नहीं हो सकती है। तेजाब फेंकने के अधिकतर कारणों में यही पाया गया है- लड़की द्वारा प्रेम या शादी से इनकार या शक। कुछ मामले में संपत्ति विवाद भी होता है।एसिड हमले की परिघटना सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे मुल्कों के अलावा आसपास के कई देशों से इस किस्म के समाचार मिलते रहते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में एसिड फेंकने की घटनायें बढ़ी हैं। 90 के दशक के पहले के सालों में जहां ऐसे हमलों की संख्या दर्जन से पचास के बीच थी वहीं बाद के वर्षों में यह आंकड़ा तीन सौ के करीब पहुंचा। और जहां तक सजा दिए जाने का सवाल था तो ऐसी स्थितियां न के बराबर थीं। वहां सक्रिय सामाजिक संगठनों के मुताबिक एसिड फेंकने के निम्न कारण दिखते हैं: शादी से इनकार, दहेज, पारिवारिक झगड़ा, वैवाहिक तनाव, जमीन विवाद या कुछ राजनीतिक कारण। तेजाब न सिर्फ चमड़ी जलाता है बल्कि हड़िडयों तक को गला देता है तथा शरीर को कमजोर कर देता है। पीड़ित की देखने-सुनने की क्षमता भी बुरी तरह प्रभावित होती है। इतना ही नहीं, यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी खत्म कर देता है, लिहाजा कोई भी संक्रमण तथा बीमारी उसे जल्दी पकड़ लेती है जो जानलेवा भी हो जाता है। तेजाब के चपेट में आये लोगोंं का इलाज हर जगह, हर अस्पताल में सम्भव नहीं होता है तथा वह बहुत महंगा भी होता है। इसके साथ सबसे अधिक चिन्ता की बात यह है कि पीड़ित को अपने समाज का तिरस्कार भी झेलना पड़ता है। पीड़ित देखने में चूंकि असामान्य तथा ‘बदरंग’ हो जाते हैं इसलिये लोग उनसे सहज सम्बन्ध नहीं बनाते हैं। वे अपने पूरे परिवार तथा समाज में उपेक्षित बन जाते हैं। कई शहरों में तेजाब पीड़ितों ने आपस में एकता कायम की है। मुम्बई तथा बेंगलुरू में बाकायदा तेजाब पीड़ितों ने अपना संगठन भी बनाया है और वे अपने अधिकारों के लिए तथा एक–दूसरे को सहायता करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी एकता का आधार और कुछ नहीं सिर्फ हमले का एक प्रकार का होना है। ‘बर्न सर्वाइवर ग्रुप ऑफ इण्डिया’ ऐसा ही एक समूह मुम्बई में है। इस प्रकार हम देखते हंै कि यह अपराध पूरी मानवता के सामने एक भयावह चित्र खींचता है। ऐसे में इस अपराध पर नियंत्रण के लिये सख्त कानूनी उपायों का आना स्वागत योग्य है। किन्तु अभी भी समाधान सिर्फ इतने से नहीं निकलेगा। हमें यह भी विचार करना होगा कि आखिर स्त्री समुदाय के खिलाफ ऐसे अपराध क्यों होते हंै? क्यों ऐसी मानसिकता बनी जिसमें पुरूष औरत को अपने मातहत, अपनी इच्छा के अनुरूप पाना चाहता है और वह इच्छा किसी भी तरह से पूरी होनी चाहिये। अस्वीकार को सहन करना उसकी मजबूरी क्यों नहीं बन पाती? समाज में हिंसा जो परतें मौजूद हैं, उसमें तेजाब फेंकने की हिंसा को सबसे क्रूरतम हिंसा के दर्जे में रखा जाता है। ऐसे अपराध करने वालों को कठोर सजा मिलना जरूरी है, तभी इस क्रूर हिंसा पर काबू पाया जा सकता है।