Tuesday, July 22, 2008

मुद्दा : बलात्कार पीड़ित की मदद पर उठे सवाल

मुद्दा : बलात्कार पीड़ित की मदद पर उठे सवाल
आर्यसरकार की आ॓र से दंगा पीड़ित, प्राकृतिक आपदा पीड़ित,बांध विस्थापित व ‘सेज’ से प्रभावित लोगों के लिए मुआवजा देने की व्यवस्था है। लेकिन अब सरकार बलात्कार की पीड़ित महिला को दो लाख रूपये आर्थिक सहायता देने पर विचार कर रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा तैयार की गई ‘राहत एवं पुनर्वास’ नामक योजना के तहत बलात्कार की पीड़िता को 2 लाख की रकम तीन चरणों में दी जायेगी। बलात्कार की एफआईआर दर्ज कराने पर उसे 20 हजार रूपये की तुरन्त मदद दी जायेगी। 50 हजार की रकम तब दी जायेगी जब पुलिस अपनी जांच में बलात्कार की पुष्टि कर देती है। यह रकम पीड़ित के पुनर्वास, इलाज और काउंसलिंग आदि के लिए होगी और शेष एक लाख तीस हजार की रकम गवाही पूरी होने के बाद दी जायेगी।इस राहत एवं पुनर्वास योजना के तहत बलात्कार पीड़ित की जो आर्थिक मदद की जायेगी, उस बावत महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी का कहना है ‘अक्सर बलात्कार पीड़ित महिला के पास इस हादसे के तुरन्त इलाज के लिए पैसा नहीं होता। इसलिए राष्ट्रीय महिला आयोग और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने तुरन्त राहत के लिए आर्थिक पैकेज का प्रस्ताव तैयार किया है।’ निश्चित तौर पर बलात्कार की पीड़ित महिला पर इस हादसे का गहरा असर पड़ता है। यह चोट महज शारीरिक ही नहीं होती बल्कि उसके पूरे व्यक्तित्व पर दूरगामी असर छोड़ती है। पीड़ित खुद के विश्वास को कम आंकने लगती है। उसे ऐसा महसूस होता है कि उसके सम्मान का अपमान किया गया है। जाहिर तौर पर ऐसी क्षतिपूर्ति रकम से नहीं हो सकती। महिला एवं बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी का मानना है कि यह योजना पीड़िता को आर्थिक व सामाजिक मदद प्रदान करने की दिशा में सरकार की आ॓र से उठाया गया एक कदम है। बलात्कार की पीड़ित महिला के लिए इस राहत एवं पुनर्वास पैकेज को मुआवजा नहीं कहा जाना चाहिए। दरअसल सरकार बलात्कार पीड़ित महिला को दिये जाने वाली सरकारी रकम को मुआवजा की बजाय राहत एवं पुनर्वास योजना का नाम इसलिए दे रही है क्योंकि बलात्कार के संदर्भ में मुआवजा शब्द का इस्तेमाल तीखी आलोचना का विषय रहा है। बलात्कार जैसे अमानवीय व वीभत्स कृत्य की क्षति पूर्ति के लिए मुआवजा शब्द का इस्तेमाल उचित नहीं। करीब 13 साल पहले मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में एक महिला के साथ बलात्कार किया गया। पुलिस ने बलात्कारी को तो पकड़ लिया था लेकिन इस घटना को लेकर जनता में प्रशासन के खिलाफ नाराजगी थी। प्रशासन ने जनता की नाराजगी को दूर करने व बलात्कार पीड़ित लड़की के प्रति सहानुभूति दिखाने के मकसद से पीड़िता को मुआवजा देने की घोषणा कर दी। इस मामले की न्यायिक प्रक्रिया के दौरान डाक्टरी जांच के समय अभियुक्त ने उसी पीड़िता के साथ एक बार फिर बलात्कार किया। मध्य प्रदेश सरकार के हाथ-पांव फूल गये और आनन फानन में मुआवजे की रकम बढ़ाकर दोगुनी कर दी। महिला संगठनों ने सरकार को मुआवजे के मुद्दे पर बुरी तरह से घेर लिया और कहा कि लगता है कि सरकार ने बलात्कार की कीमत तय कर दी है। इस प्रखर आलोचना को देखते हुए सरकार को इसके लिए खेद जताना पड़ा। सरकार बलात्कार की पीड़ित महिला की आर्थिक एवं समाजिक मदद के लिए जिस राहत एवं पुनर्वास योजना को अंतिम रूप दे रही है उस पर सवाल भी उठने लगे हैं।यह आर्थिक मदद क्या वास्तव में पीड़ित तक पहुंचेगी या बीच में दलाल अपना हिस्सा काटेंगे ? क्या दो लाख की रकम के लिए झूठे केस भी दर्ज कराये जायेंगे? इन सवालों की पृष्ठभूमि में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम 1989 का अनुभव बोल रहा है। इस अधिनियम 1989 के तहत अगर किसी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की लड़की/महिला के साथ बलात्कार होता है तो सरकार पीड़ित की मदद के लिए 50 हजार रूपये की रकम देती है। लेकिन पाया गया कि इस रकम का कहीं–कहीं सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इसका मोटा हिस्सा रकम बांटने वाले सरकारी अधिकारी व पीड़ित की मदद करने वाले अन्य लोग ले जाते हैं। घर के पुरूष मसलन भाई, पति भी किसी न किसी बहाने अपना हिस्सा ले लेते हैं और पीड़ित के हाथ लगती है निराशा। वर्ष 2002 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन गृह मंत्री महेन्द्र बुद्ध जो कि खुद दलित हैं, ने स्वीकार किया था कि उस साल राज्य में 740 दलित महिलाओं ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें से 75 प्रतिशत मामले झूठे थे। दरअसल गांव के दबंग लोग अपने दुश्मनों से बदला लेने के लिए इन महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं। वे अपनी जाति, जमीन, व पैसे का रौब दिखाकर इन्हें बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराने के लिए डराते धमकाते हंै।