Wednesday, September 10, 2008

मुद्दा : धार्मिक संस्थाओं में यौन उत्पीड़न?

केरल के कोल्लम जिले की एक कैथोलिक नन अनुपा मेरी की खुदकुशी ने नयी बहस को जन्म दिया है। 24 वर्ष उम्र की अनुपा की लाश ठाकासेरी के सेंट मेरी कान्वेन्ट में लटकी पायी गयी थी। उसने सुसाइड नोट में लिखा है कि उसे यह कदम इसीलिए उठाना पड़ा, क्योंकि एक वरिष्ठ नन ने उसे मानसिक प्रताड़ना दी थी। दूसरी तरफ अनुपा मेरी के पिता ने बताया कि मुश्किल से दो माह पहले इस कान्वेन्ट में पहुंची अनुपा को उसी कान्वेन्ट की वरिष्ठ नन के हाथों यौन प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी और अनुपा ने अपने इन अनुभवों को अपनी मां-बहन को बताया था।ईसाई धर्म प्रचारक समुदाय में इधर के दिनों में यौन स्वच्छंदता के कई मामले सामने आए हैं। पिछले माह ही कोट्टायम के एक जैकोबाइट चर्च के पादरी को एक अवयस्क लड़की से बलात्कार के आरोप में सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। दो माह पहले कोच्चि में एक कैथोलिक नन को पद से हटा दिया गया था, जब अस्पताल के ड्राइवर के साथ उसके यौन सम्बन्ध सामने आए थे। राज्य महिला आयोग ने नन बनने की प्रक्रिया के बारे में सरकार के सामने कुछ सुझाव पेश किए थे। केरल देश को सबसे अधिक नन और पादरी उपलब्ध कराता है। कुल 1,02,810 ननों में से 33,226 केरल की हैं। पादरी भी सबसे ज्यादा केरल के हैं।चर्च के एक अन्तरराष्ट्रीय समूह द्वारा किये गये अध्ययन ने रेखांकित किया है कि केरल में पिछले 14 बरसों में 15 ननों ने आत्महत्या की, जो अपने घुटन भरे जीवन से परेशान थीं। यहां भी पुरूषों की तुलना में महिलाओं पर दबाव अधिक हंै। एक ईसाई कार्यकर्ता के. के. थॉमस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आयोग ने इन सुझावों को पेश किया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार द्वारा नन बनने की न्यूनतम आयु निर्धारित होनी चाहिए। उनके मुताबिक, आमतौर पर जब बच्चियां छोटी होती हैं और निर्णय लेने की अवस्था में नहीं होती हैं, तभी उन्हें घरवाले नन बनने के लिए भेज देते हैं। नन बन चुकी लड़कियों का परिवार की सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं रह जाता है। एक तरह से घर की सम्पत्ति से उन्हें बेदखल करने का यह तरीका बनता है। आयोग ने सरकार से कहा था कि ऐसे मां–बाप पर कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए, जिन्होंने बेटी को नन बनने के लिए मजबूर किया है।आयोग ने सरकार से कहा था कि ननों की सम्पत्ति से बेदखली रोकी जाए तथा सरकार ऐसी रणनीति तैयार करे, जिसमें यदि कोई नन वापस आना चाहे, तो उसका पुनर्वास हो सके। वह साधारण पारिवारिक जीवन जीना चाहे, तो उसके अधिकार की रक्षा हो सके। आयोग की अध्यक्ष न्यायाधीश डी श्रीदेवी के मुताबिक, सरकार एक ऐसा व्यापक सर्वे कराये, जिससे पता चल सके कि कितनी बच्चियों को नन बनने के लिए परिवारवालों द्वारा बाध्य किया गया और कितनी ननें सामाजिक जीवन में लौटना चाहती हैं। इनके लिए सरकार की तरफ से पैकेज मुहैया कराया जाए। साफ था कि चर्च के अधिकारियों ने केरल महिला आयोग के सुझावों को गैरजरूरी तथा अपने धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि यह सिर्फ सुझाव हैं, इन्हें मानने या न मानने के लिए हम आजाद हैं। आयोग के सुझावों ने केरल में बवंडर खड़ा किया था।वैसे महिलाओं को न्याय दिलाने के प्रति आनाकानी करने में सिर्फ केरल के चर्च ही जिम्मेदार नहीं है। सभी धर्मों में इसी किस्म की आनाकानी रवैया दिखता है। हिन्दू, मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं या अन्य धर्म भी बेहतर नहीं हैं। जैन धर्म में भी किशोरियों को साध्वी बनाने की परम्परा है। ऐसी साध्वी बनाने का संकल्प लेनेवाली लड़कियों को काफी महिमामंडित किया जाता है और बाकायदा जुलूस के साथ उनकी विदाई की जाती है। अन्दाजा लगाया जा सकता है कि वहां पर एक बार साध्वी बनी लड़की के लिए वापसी मुश्किल रहती होगी। लोगों को याद होगा कि पिछले साल महाराष्ट्र के एक आश्रम से इसी तरह एक साध्वी के चले जाने का समाचार मिला था, जो अपने पुराने मित्र के साथ कहीं चली गयी थी। हिन्दुओं में जितनी बड़ी संख्या में बाबाओं–साध्वियों का आगमन हुआ है, उनमें से कई इसी तरह महिलाओं को अपने आश्रम में साध्वी बनाते हैं। उत्तर भारत के एक चर्चित संत जिनकी पंजाब–हरियाणा तथा आसपास के सूबों की मुख्यत: दलित जातियों में गहरी पकड़ है, के आश्रम की साध्वी ने इन ‘महात्मा’ के यौन अत्याचारों के किस्के बयां कर सीबीआई को पत्र भी लिखा था, जिसकी जांच चल रही है। क्या उम्मीद करें कि अनुपा की अस्वाभाविक मौत तमाम सवालों पर न्यायसंगत फैसला लेने का रास्ता सुगम करेगी?

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